समानता का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं

समानता क्या है

समानता लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। समानता के इलावा स्वतंत्रता और भाईचारे की भावना को लोकतंत्र का स्तंभ माना जाता है। समानता की अवधारणा के बारे में कुछ गलत धारणाएं हैं और कुछ दस्तावेज समानता की गलत धारणाओं का वर्णन करते हैं। जैसे कि 1776 में अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा (American Declaration of Independence) में कहा गया है: “हम इन सच्चाइयों को पूरी तरह से समझते हैं कि सभी व्यक्ति समान रूप से पैदा हुए हैं।'' ("We hold these truth to be self-Evident that all men are created equal")

इसका मतलब है कि अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा यह स्वीकार करती है कि सभी व्यक्ति समान रूप से पैदा हुए हैं और उनमें समानता पाई जाती हैं। । इस तरह की समानता न तो प्रकृति द्वारा बनाई गई है और न ही यह मानव निर्माण की जा सकती है। एक माँ के गर्भ से पैदा हुए दो व्यक्ति भी समान नहीं होते हैं क्योंकि उनके भी अनंत अंतर होते हैं। इसी तरह, फ्रांस की क्रांति के बाद, लोगों के अधिकारों की घोषणा करते, राष्ट्रीय सभा (National Assembly) ने यह कहा था कि, "मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं और हमेशा अपने अधिकारों संबंधी स्वतंत्र और समान रहते है।" ("Men are born free and always continue to be free and equal in respect of their rights")

जहाँ तक अधिकारों संबंधी सवाल है, उस संबंधी तो यह स्वीकार किया जा सकता है कि अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त होने चाहिए। लेकिन यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि सभी लोग समान रूप से पैदा हुए हैं और इसी कारण उनके अधिकार भी समान होते हैं। इस तरह की समानता को प्राकृतिक समानता कहा जाता है, जो व्यवहार में इस धरती से उपलब्ध नहीं है और केवल उसकी कल्पना ही की जा सकती है क्योंकि इस मानवीय संसार में सभी व्यक्तियों का समान पैदा होना या समान तौर पर रहना बिलकुल असंभव है। मनुष्यों में शारीरिक बनावट संबंधी अंतर होता है। और उनकी बुद्धि भागफल (Intelligence Quotient) में तो बहुत ज्यादा अंतर हैं। कुछ व्यक्ति बहुत   बुद्धिमान होते है और कुछ अन्य व्यक्ति बुद्धिमान नहीं होते। कहने का भाव यह है कि समानता का अर्थ है यह नहीं है कि सभी लोग प्राकर्तिक रूप से समान पैदा हुए हैं और इस विश्व में भी सभी को समानता जीवन के हर पहलू में प्राप्त होनी चाहिए।

आम तौर पर समानता के दो पक्ष माना जाते है -

  1. नकारात्मक पक्ष
  2. सकारात्मक पक्ष

इनकी संक्षिप्त व्याख्या निम्नलिखित अनुसार है।

  1. नकारात्मक पहलू (Negetive Aspects) - समानता के नकारात्मक पहलू का दूसरा नाम प्राकृतिक समानता है। यह कहना है कि प्रकृति ने सभी लोगों को समान पैदा किया है, उनके हितों, इरादों, बुद्धिजीवियों आदि में कोई भिन्नता नहीं है। इस तरह की समानता नकारात्मक रूप की होती है, कयोंकि समानता का यह पहलू व्यवहार में संभव ही नहीं है। एक महान गुणवान व्यक्ति को एक आम व्यक्ति के समान समझकर उनकों समान रूप से प्रदान करना। यह समानता का सार नहीं है क्योंकि सभी समाजों में यह संभव नहीं है कि यह सभी को समान सहूलियत, समान वेतन, समान अवसर दिए जा सके। इस तरह की समानताएँ साम्यवादी देश भी नहीं दे सके, जो समानता को अपना प्रमुख उद्देश्य मानते है। उन देशों में भी कम्युनिस्ट नेताओं, कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों और आम लोगों में कई प्रकार के अंतर मौजूद है।
  2. सकारात्मक पहलू (Positive Aspect) - समानता के सकारात्मक पक्ष का यह भाव है कि हर सक्षम व्यक्ति को समान अवसर उपलब्ध हो। किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की श्रेणी या वर्ग को धर्म, जाति, नस्ल, रंग, क्षेत्र, लिंग के आधार पर भेदभाव का न होना समानता के सकारात्मक पक्ष का सार है। इसके साथ ही, सकारात्मक पक्ष इस बात पर भी जोर देता है कि किसी वर्ग या श्रेणी के लिए विशेष अधिकारों की व्यवस्था नहीं की जानी चाहिए। समानता का सबसे पहला नारा लगाने वाले फ्रांसीसी क्रांतिकारी थे, जिन्होने स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को लोकतंत्र का आधार माना था। प्रत्येक लोकतांत्रिक समाज को भी सकारात्मक समानता दी जाती है, क्योंकि इस तरह की समानता सभ्य समाज में ही संभव हो सकती है।

समानता की अर्थ और परिभाषा

समानता का साधारण अर्थ सभी व्यक्तियों की प्राकृतिक समानता है। लेकिन इस इस तरह की समानता समाज में ही संभव नहीं हो सकती। बार्कर (Barker) के अनुसार, "समानता के सिद्धांत का अर्थ यह है कि अधिकारों के रूप में जो सहूलियतें मुझे प्राप्त हैं वह दूसरों को भी उसे ही रूप में प्राप्त होगी और जो अधिकार दूसरों को दिए गए हैं वह मुझे प्राप्त होंगे।
इस परिभाषा का भाव सभी व्यक्तियों को अधिकारों की समान उपलब्धि प्राप्त होना है।

समानता का अर्थ बताते हुए, प्रसिद्ध विद्वान लास्की (Laski) ने भी कहा है कि, “ नागरिक होने के नाते जो अधिकार  दूसरे व्यक्तियों को मिले हैं उसे ही रूप में और उसे ही हद तक वह अधिकार मुझे भी मिलना चाहिए।

समानता के अर्थों की व्याख्या करते हुए लास्की (Laski) ने यह भी कहा है कि, "समानता का पहला अर्थ विशेष अधिकारों की अनुपस्थिति है और इसका दूसरा अर्थ सभी लोगों को विकास करने के लिए योग अवसर प्राप्त होने हैं।"

प्रो. डी. डी. रफैल (Prof. D. D. Raphall) के अनुसार, "सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें, जिसमें विकास की आवश्यकता और मानवीय योग्यताओं का प्रयोग भी शामिल है, कि संतुष्टि है।

समानता सिद्धांत की व्याख्या करते हुए इंग्लैंड के प्रसिद्ध प्रसिद्ध विद्वान, लास्की ने बहुत सुंदर शब्द कहें है। लास्की के अनुसार, समानता का अर्थ यह नहीं है कि सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाए और प्रत्येक व्यक्ति को समान मजदूरी दी जाए। यदि ईंट लगाने वाले व्यक्ति को गणितीय विशेषज्ञ या एक वैज्ञानिक के समान तनख्वाह दी जाए, तो ऐसी व्यवस्था समानता के सिद्धांत को नष्ट कर देगी, समाज का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।

सारांश में, हम कह सकते हैं कि समानता का भाव -

  • जन्म, धर्म, नस्ल, रंग आदि के आधार पर विशेषाधिकार की अनुपस्थिति।
  • बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को समान अधिकार की प्राप्ति।
  • सभी व्यक्तियों को अपना सर्वोत्तम विकास करने के लिए योग्य और समान अवसरों की उपलब्धता और
  • व्यक्तियों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए योग्य अवसरों की समान रूप में उपलब्धता है।
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समानता की विशेषताएं -

समानता की परिभाषा और अर्थ को समझने के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि समानता का सिद्धांत निम्नलिखित प्रावधानों की मांग करता है और यह प्रावधान ही समानता की विशेषताएं मानी जाती हैं।

  1. समान अधिकारों का प्रावधान (Provision of Equal Rights)
  2. विशेष विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति (Absence of Special Privileges)
  3. समान अवसर का प्रावधान (Provision of Equal Opportunities)
  4. बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfillment of Basic Needs)
  5. वर्ग वांट या श्रेणी की अनुपस्थिति (Absence of Class Division)
  6. रचनात्मक भेदभाव की अनुमति (Constructive discrimination allowed) 

1. समान अधिकारों का प्रावधान (Provision of Equal Rights) - समानता का सिद्धांत यह मांग करता है कि अधिकारों का प्रावधान सभी के लिए समान रूप में होना चाहिए, इस संबंध में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। किसी भी वर्ग के लोगों को विशेष अधिकार देने या किसी वर्ग को अधिकारों से वंचित करना या धर्म, जाति, नस्ल, लिंग आदि के आधार पर अधिकार देन संबंधी भेदभाव करना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

2. विशेष विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति (Absence of Special Privileges) - समानता का सिद्धांत इस व्यवस्था की सचाई पर आधारित है कि किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को विशेष विशेषाधिकार नहीं दिए जा सकते हैं। कोई समय था जब मुसलमानों को धर्म के आधार पर कुछ अधिकार प्राप्त थे और कुछ ब्रिटिश सरकार ने हिंदुओं और अन्य धार्मिक लोगों को वह अधिकार नहीं दिए थे। कभी ब्रिटेन में भी कई प्रकार के अधिकार केवल शाही घराने के लोगों को दिए गए थे। जबकि आम जनता को उन अधिकारों से दूर रखा गया था। इस तरह की स्थिति अमेरिका में भी रही है। वही कूछ अधिकार उत्तरी राज्यों के गोरे अमेरिकियों से मिले हुए थे लेकिन दक्षिणी राज्यों के काले लोगों को वह अधिकार कम ही दिये जाते थे। इंग्लैंड, अमेरिका और स्विट्जरलैंड में लोकतांत्रिक प्रणाली काफी लंबे समय से चली आ रही है, लेकिन वहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार पुरुषों के बराबर प्राप्त नहीं था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी महिलाओं को 1920 में, इंग्लैंड ने महिलाओं 1928 में और स्विट्जरलैंड ने यह अधिकार वहाँ की महिलाओं को 1971 में दिए थे। रंग या लिंग आदि के आधार पर अधिकार देने संबंधी भेदभाव करना समानता के सिद्धांत के विपरीत है।

3. समान अवसर का प्रावधान (Provision of Equal Opportunities) - प्रत्येक लोकतांत्रिक राज्य में सभी सक्षम लोगों के लिए अवसरों की समानता की व्यवस्था होनी चाहिए। किसी भी आधार पर किसी विशेष वर्ग के व्यक्तियों के लिए या श्रेणियों के लिए अवसरों की व्यवस्था करना या किसी वर्ग को उन अवसरों से दूर रखने की व्यवस्था करना, समानता के अधिकार की स्पष्ट उल्लंघन है। अवसरों की समानता के लिए कोई योग्यता तो निश्चित की जा सकती है लेकिन धर्म, जाति, लिंग, नस्ल, क्षेत्र, रंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर अवसरों की व्यवस्था करना, या किसी श्रेणी को अवसरों से वंचित करना, समानता के सिद्धांत के बिलकुल विपरीत है। योग्यता को लागू करने से हमारा भाव यह है कि सभी लोग डॉक्टर बनने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, और न ही सभी लोगों को प्रोफेसर बनाया जा सकता है - ऐसे पदों और कई अन्य पदों के लिए योग्यता निश्चित करनी आवश्यक है, लेकिन वह योग्यता रखने वाले व्यक्तियों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र में इस प्रकार की समानताएं उपलब्ध होती हैं।

4. बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfillment of Basic Needs) - समानता का सिद्धांत यह भी मांग करता है कि सामान्य अवसरों की उपलब्धता के साथ यह भी प्रयासों होने चाहिए जो सभी व्यक्तियों की बुनियादी जरूरतें पूरी होती ही। आम तौर पर रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की बुनियादी जरूरतें हैं। भले ही आज के युग में कई अन्य आवश्यकताएं भी मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताएं बन गई हैं, लेकिन इन उपरोक्त आवश्यकताओं की बुनियादी आवश्यकताओं संबंधी पहल दी जाती हैं। प्रो लास्की का कथन है कि, "अगर मेरे पड़ोसी को बिना रोटी के रहने के लिए मजबूर होना पड़े तो मुझे केक खाने का कोई अधिकार नहीं है।" इसका मतलब है कि आरामदायक सुविधाओं के प्रावधान से पहले लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए। भले ही इस तथ्य को समानता की विशेषता माना जाता है, लेकिन किसी कानूनी दस्तावेज में बुनियादी जरूरतों की पूर्ति को समानता के सिद्धांत का आधार नहीं बनाया है।

5. वर्ग वांट या श्रेणी की अनुपस्थिति (Absence of Class Division) - कहने को तो यह कहा जा सकता है कि समाज में वर्ग वांट या श्रेणी की वांट नहीं होनी चाहिए और समाज श्रेणी से मुक्त होना चाहिए है। कहने का भाव यह है कि समानता का सिद्धांत यह मांग करता है कि समाज में व्यक्ति अलग-अलग श्रेणियों या वर्गों में नहीं बांटे होने चाहिए। बल्कि उनमें समानता की भावना और समानता के आधार पर जीविन जीने के लिए हर तरह के योग अवसर प्राप्त होने चाहिए। श्रेणी रहित या वर्ग रहित समाज साम्यवाद (Communism) का सपना था। लेकिन ऐसा सपना साकार रूप में ना किधरे पूरा हुआ है और ना ही इसकी पूर्ति की कोई संभावना है। जबसे मनुष्य ने भिन्न भिन्न प्रकार के पेशे या नौकरियां करनी है, उत्पादन के साधनों की मालकी भी निजी हाथों में होनी है, अपनी मजदूरी बेच के मजदूर वर्ग ने अपनी रोजी कमानी है और जहां अलग-अलग धर्मों के लोगों को भिन्न भिन्न धार्मिक शिक्षाओं देनी हैं वहां श्रेणी रहित या वर्ग रहित समाज की कल्पना करनी एक भ्रम या दिखावे से अधिक कुछ नहीं है।

6. रचनात्मक भेदभाव की अनुमति (Constructive discrimination allowed) - रचनात्मक या सकारात्मक भेदभाव से भाव ऐसा भेदभाव है जो कमजोर श्रेणी को ऊचा उठाने के लिए किया जाता है। हमारे देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित कबीले, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं के कई प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था निस्संकोच समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है, लेकिन यह भेदभाव कमजोर वर्ग के लोगों के विकास के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान करने के लिए किया जाता है, ताकि सदियों से चले आ रहे दबे-कुचले लोग भी अन्य विकसित श्रेणी के लोगों की तरह विकास हों सके। इस तरह के रचनात्मक या सकारात्मक भेदभाव का प्रावधान समानता सिद्धांत की उल्लंघना नहीं मानी जाती है।

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