भारत की विदेश नीति का अर्थ, परिभाषा और उद्देश्य

विदेश नीति का अर्थ, परिभाषा और उद्देश्य

आज राष्ट्रीय राज्यों और अंतर-राष्ट्रवाद युग में, किसी भी देश 'राष्ट्रो के परिवार' से अलग  होकर अपनी होंद कायम रखने और सर्वपख्खी विकास करने के योग नहीं हो सकता। आज के युग में, प्रत्येक देश, बड़े और छोटे, को अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित करने और अपनी नीतियों और कारजो को अंतर्राष्ट्रीय वातावरण के अनुकूल बनाना होगा। अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित करने और इन संबंधों को राष्ट्रहित में संचालित करने का कार्य विदेश नीति का मूल तथ्य है। प्रसिद्ध विद्वान अदि एच डॉक्टर (Adi H. Doctor) ने ठीक ही कहा है, अन्य राज्यों के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करना हर राज्य का एक आवश्यक कार्य है। इस कार्य को आमतौर पर विदेश नीति का निर्माण कहा जाता है।

विदेश नीति की परिभाषा

रूथना स्वामी (Ruthna Swamy) के अनुसार - विदेश नीति उन सिद्धांतों और क्रिया का एक समूह है जो एक राज्य से दूसरे राज्य के कार-विहार को नियमित करती है।

जॉर्ज मॉडलसकी (George Modelski) के शब्दों में - 'विदेश नीति समाज द्वारा विकसित उन गतिविधियों की प्रावधान है जिसके माध्यम से वे अन्य राज्यों के व्यवहार को बदलना और अपनी गतिविधियों को अंतर्राष्ट्रीय माहोल के अनुकूल बनाना चाहते हैं।

डॉ महिंदर कुमार (Dr. Mohinder Kumar) के शब्दों में - 'विदेश नीति कार्यशीलता की एक योजना है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय हितों और विचारधारा के अनुसार विदेशी संबंधों के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

डॉ जॉनसन (Dr. Johnson) के मत के अनुसार - “विदेश नीति शासन की कला है, जो मुख्य रूप से विदेशी शक्तियों के साथ संबंध रखती हैं।

विदेश नीति की उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि एक राज्य द्वारा अपने विदेशी संबंधों को राष्ट्रीय हितों में विनियमित करने के लिए अपनाई गई संचालन विधि का नाम विदेश नीति है। प्रत्येक देश की सरकार ऐसी नीति अपनाएगी जो अन्य देशों की सरकारों की नीतियों और कार्यों को अपने हित में प्रभावित करे। जिस हद तक कोई देश अपने इस उद्देश्य में सफल होता है, उस हद तक ही उस देश की विदेश नीति को सफल माना जाता है।

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भारत की विदेश नीति के उद्देश्य

  • राष्ट्रीय हित एकमात्र उद्देश्य - हर एक देश की विदेश नीति का एक ही उदेश्य होता है उस उद्देश्य को राष्ट्रीय हित का नाम दिया जाता है। दुनिया का कोई भी देश ऐसी विदेश नीति को लागू नहीं करेगा जो उसके राष्ट्रीय हित के अनुरूप हो।  यहां तक के हम कह सकते हैं कि अगर युद्ध करना हो या हथियारों का उत्पादन करना हो या विश्व शांति के खिलाफ प्रयास करना हो, यह उस देश के राष्ट्रीय हित में है। ऐसी कार्रवाई करने पर कोई भी उसे जिम्मेवार ठहराने की  कोशिश नहीं करेगा।
  • संवैधानिक प्रावधान - हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में कहा गया है कि राज्य निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए प्रयास करेगा:
  1. अंतर्राष्ट्रीय शांति और  सुरक्षा का विकास करना, 
  2. राष्ट्रों के बीच निष्पक्ष और सम्मानजनक संबंध स्थापित करना,
  3. अंतर्राष्ट्रीय कानून के लिए और संगठित लोगों के आपसी विवहार की गई संधियों के प्रति सम्मान विकसित करेगा।
  4. अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करने के लिए प्रोत्साहित करना। 
संविधान में वर्णित ये तथ्य, विदेशियों के साथ अच्छे संबंधों पर जोर देते हैं, पर इन तथ्यों को भारत की विदेश नीति का उद्देश्य नहीं कहा जा सकता है। अगर यह सभी व्यवस्थाएँ हमारे राष्ट्रीय हितों के अनुसार हैं, तो इन व्यवस्थाओं को भारत के राष्ट्रीय हितों की प्राप्ती का एक साधन माना जा सकता है, लेकिन इन्हें भारत की विदेश नीति का स्थायी लक्ष्य नहीं माना जा सकता है।
  • कुछ अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य - अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दो गुटों की राजनीति से से दूर रहकर गुट निरपेक्षता की नीति को ग्रहण करना, संयुक्त राष्ट्र का समर्थन, राष्ट्रमंडल संगठन का समर्थन, पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध, सामराजवाद, नस्लवाद और शस्त्ररीकरन का विरोध, शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु शक्ति का उपयोग और दुनिया के विभिन्न देशों के साथ अच्छे संबंध, आदि। इन्हें भी भारत की राजनीति के उद्देश्य कहा जा सकता है।
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