जल प्रदूषण क्या है जल प्रदूषण रोकने के उपाय

जल प्रदूषण क्या है इसके कारण

जल प्रदूषण- पृथ्वी की सत्ता का 70% प्रतिशत से अधिक भाग पानी से ढका हुआ है। उनमें से 97.50 प्रतिशत पानी महासागरों में है। ताजा पानी, जो वास्तविक तौर पर सिंचाई, पीने, बिजली उत्पादन और औद्योगिक उपयोग के लिए उपलब्ध है, वह पानी की कुल मात्रा का केवल 0.5 प्रतिशत है। यह झीलों, नदियों और भूमि के नीचे पाया जाता है। ताजा और समुद्री, दोनों प्रकार के पानी पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। जल प्रदूषण को पानी में कार्बनिक, अकार्बनिक, जैविक और रेडियो एक्टिव पदार्थों की अनचाही मिलावट के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह प्रदूषण पानी की सही गुणवत्ता को खराब करता है।
जल प्रदूषण क्या है इसके कारण
जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत सीवरेज, उद्योग और कृषि फार्म हैं। सीवेज वह व्यर्थ पानी है जिसमें मानव मूत्र, साबुन, मैलाकाइट, पशु मूत्र और कई अन्य जैविक कार्बनिक योगिक मौजूद होते है। जल स्रोतों में अघोषित सीवेज का निकास, उन्हें प्रदूषित करता है। इसी तरह, विभिन्न उद्योगों जैसे कि पेपर मिल, चमड़ा कारखाने, साबुन कारखाने और चीनी मिलों से पैदा हुए अवशेष जल प्रदूषण को बढ़ाते हैं। इस औद्योगिक अवशेषों में विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थ होते हैं जैसे क्षार, अम्ल, सायनाइड, सिक्का, पारा, जिंक, आदि शामिल होते है। ये सभी पदार्थ पानी के प्रमुख प्रदूषक हैं। कृषि गतिविधियाँ भी कई प्रकार के जल प्रदूषक पैदा करती हैं। खेतों की सत्ता से बह रहा जल भी अपने साथ कीटनाशकों, पैसटासाईडज, रासायनिक उर्वरकों, स्वदेशी उर्वरकों और फसलों की अपशिष्ट - अवशेष जल स्रोतों में ले जाता है। भारत में जल प्रदूषण नदियों, में फेके जाते मानव और अन्य जीवों के निरुपित और दृश्य के शवो के कारण होता है, जिन्हें नदियों में फेंक दिया जाता है।

ताजे पानी का प्रदूषण इसको घरेलू, सिंचाई, औद्योगिक और मनोरंजक उद्देश्यों के लिए इसे अयोग्य बनाता है।  प्रदूषित पानी में मौजूद कई सूक्ष्मजीव कई जल से फैलने वाली बीमारियों जैसे टाइफाइड, हैजा, डायरिया और हेपेटाइटिस के प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं। सिक्के, पारा और आर्सेनिक जैसे रासायनिक पदार्थ तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खेती फारमो में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक जलीय खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं और खाद्य श्रृंखला के सभी चरणों में उनकी मात्रा बढ़ जाती है। इसे जैविक विशालीकरण (Biomagnification) कहा जाता है। पानी में घूले इन कीटनाशकों के रिसाव से भूमिगत जल प्रदूषित हो सकता है। जलीय पारिस्थितिक प्रबंधों में खाद्य ओर मैलकाटा के प्रवेश के कारण पोषक तत्वों (विशेष रूप से फॉस्फेट और नाइट्रेट) के विकास की प्रक्रिया को यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) कहा जाता है। परिणामस्वरूप, जल में काई (Alge) और सूक्ष्मजीवों कि तेजी से वृद्धि होती है।  इस से जल में घुली हुई आकसीजन की मात्रा कम हो जाती है। उद्योग से निकलने वाला गर्म पानी जल स्रोत के तापमान को है और इस तरह ताप प्रदूषण (Thermal Pollution) होता है। जल - जीव, जो आमतौर पर ठंडे पानी में रहते हैं, वह तापमान में इस वृद्धि को बर्दाश्त नहीं करते हैं और ताप प्रदूषण के कारण मर जाते हैं।

समुद्री जल समुद्री भोजन, नमक, रसायनिक पदार्थों, दवाओं और खनिजों से भरपूर है। यह जैव विभिन्ता के एक बड़े हिस्से को संरक्षित करता है।  दुनिया में तेल की आपूर्ति का लगभग पांचवां हिस्सा समुद्र से आता है। महासागरों को सभी प्राकृतिक और मानव प्रदूषण के अंतिम निपटान का स्थान माना जाता है। ताजे पानी की तरह, समुद्री जल भी कई अलग-अलग प्रकार के प्रदूषकों का वहन करता है।  इनमें शहरी क्षेत्रों और फारमो की सत्ता से पानी का सीधा प्रवाह, तटीय क्षेत्रों में औद्योगिक अपशिष्ट अवशेष और वपारी जहाजों पर मनोरंजक नावों से सीधा फेंका जाता  सीवेज शामिल हैं। दुर्घटनाग्रस्त टैंकरों का तेल, प्राकृतिक तेल रिसाव और समुद्री तट से दूर चलते तेल खोजी प्लेटफार्मों से निकलते पदार्थों भी समुद्री जल को प्रदूषित करता है। समुद्री जल का प्रदूषण, बंदरगाह, जलमार्ग और प्रदूषित नदियों के पास अधिक है।
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ताजे पानी की तरह, समुद्री जल में डाले जाने वाले रसायन पदार्थों समुद्री भोजन जाल में प्रवेश हो जाते हैं और उनका जैविक विशालीकरन हो जाता हैं। कीटनाशक, प्लास्टिक और अन्य सिंथेटिक पदार्थों को निगलने से समुद्री जीव, व्हेल, डॉल्फ़िन और सील मारे जाते हैं। दुर्घटनाग्रस्त टैंकरों और प्राकृतिक तेलों के रिसाव से समुद्री जीवों के शरीर आस पास परत बना लेता है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। समुद्री जल का प्रदूषण खास तौर पर समुद्री किनारे पर, तटीय क्षेत्रों की जन जीवन पर गहरा आर्थिक प्रभाव पड़ता है। यह समुद्र तटों के मनोरंजन कम करने के साथ-साथ सैर सपाटे और मछली पकड़ने के धंधे से होने वाली आय को कम करता है।

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