सिख धर्म के प्रारंभिक विकास में एक महत्वपूर्ण संस्थान संगर और लंगर और मांजी प्रथा के साथ-साथ महत्वपूर्ण संस्थान द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया था, वो थी मसंद प्रणाली (Masand System)। इस प्रथा के शुरू होने के बारे में तीन तरह के विचार है।
- पहला विचार - मैकऑलिफ, तेजा सिंह और गंडा सिंह का विचार है कि यह प्रणाली चौथे गुरु श्री रामदास द्वारा शुरू की गई थी।
- दूसरा विचार - यह है कि इसकी शुरुआत गुरु अर्जुन देव जी ने की थी।
- तीसरा विचार - डॉ. हरि राम गुप्ता का मत है कि मसंद प्रणाली की शुरुआत गुरु राम दास जी ने शुरू की थी, लेकिन इसका तरीके से गठन और विकास गुरु अर्जन देव जी ने किया था। यही विचार आमतौर पर सही माना जाता है।
- अर्थ और आवश्यक्ता - "मसंद" एक फारसी शब्द है। यह फारसी का मूल शब्द “मसनद” से बना है और का अर्थ है “उच्च स्थान या स्थिति” क्योंकि गुरु साहिब द्वारा नियुक्त किया गए सेवकों और प्रेरकों की अन्य सिखों की तुलना में उच्च स्थिति थी, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाता था। मसंद प्रणाली को शुरू करने का मुख्य कारण यह था कि राम दासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नाम के सरोवरों के निर्माण के लिए पैसे की जरूरत थी। इसलिए एक संगठन स्थापित करने की आवश्यक्ता थी जो इस धन को बढ़ाने में मदद करे। इसके अलावा, लंगर प्रथा को चलाने के लिए धन की आवश्यक्ता थी। मंजी प्रथा से बेहतर किसी ओर संगठन की ज़रूरत थी। इस संगठन की स्थापना का एक ओर उद्देश्य था - एक अच्छे तरीके से दूर-दूर तक धर्म प्रचार करना।
- मुख्य विशेषताएं - मसंद प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में गुरु साहिब मसंद (गुरु द्वारा नियुक्त प्रमुख) नियुक्ति किए जाते थे। वह उस क्षेत्र में गुरु साहिब के विशेष प्रतिनिधि का काम करते थे। वो अपने इलाके में प्रचार करते थे और पैसा इकट्ठा करके गुरु साहिब को भेजते थे। यह पैसे बैसाखी के दिन अमृतसर में “गुरु गोलक” में जमा किया जाता था और मसंदो को इसकी रसीद भी मिली। दूर के स्थानों में जहाँ ये मसंद नहीं जा सकते थे, उनके प्रतिनिधि संगतों से धन इकट्ठा करते थे और उसे मसंदो के पास भेजते थे और वे इसे गुरु साहिब के पास जमा करते थे।गुरु साहिब ने सभी सिखों को यह कहा हुआ था कि वे अपनी आय का दसवां हिस्सा (दशवन्ध) धार्मिक उद्देश्यों के लिए देने के लिए कहा गया था, लेकिन इसे जबरदस्ती द्वारा नहीं लिया जाता था। सिख अपनी इच्छा से धन दान करते थे।
- महत्व - सिख धर्म के प्रारंभिक विकास में मसंद प्रथा का महत्वपूर्ण योगदान था। मसंद उच्च आचरण और त्याग का जीवन बिताते थे। उनके उपदेश से लोग बहुत प्रभावित होते थे। इसलिए यह संस्था सिख धर्म के प्रचार में बहुत मददगार साबित हुई। मस्सों के माध्यम से इकठ्ठे किए गए धन से अमृतसर, संतोखसर, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और अन्य स्थानों पर निर्माण कार्यो को पूरा करने में सफलता मिली। इस पैसे से लंगर का काम भी बहुत सफलतापूर्वक जारी रहा, लेकिन इस प्रथा का नुकसान यह हुआ कि मुगल बादशाहों को एहसास होने लगा कि गुरु साहिब लोगों से कर वसूलते है। वे एक राज्य के भीतर एक राज्य स्थापित करना चाहते है। इसलिए इस दृष्टि से यह गुरु अर्जुन देव जी की शहादत का एक प्रमुख कारण था, लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लोग धन (पैसे) अपनी इच्छा (खुशी) और धार्मिक भावना से दिया करते थे। लोगों से दशवन्ध कर की तरह जबरदस्ती वसुला नहीं जाता था और दूसरा इस धन का उपयोग गुरु साहिब किसी राजनीतिक उद्देश्य या अपनी निजी सहुलियत के लिए इस्तेमाल नहीं करते थे। बल्कि इसका उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
- मसंद प्रणाली की समाप्ति - गुरु अर्जुन देव जी के बाद मसंद प्रणाली में कई दोश आ गई। मसंदो के व्यवहार में गिरावट आ गई। मसंद त्यागी और सदाचारी नहीं रहे। वही लालची और भोग-विलासी बन गई। उन्होंने पैसे इकट्ठे करने के लिए लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। कई मसंद ‘मीणे’, ‘धीर मल्लीये’ और ‘राम राइये’ आदि ने तो गुरु के विरोधियों का साथ देना शुरू कर दिया। यहां तक कि इन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को हरिमंदिर साहिब में प्रवेश न करने दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने मसंद प्रणाली में आ चुकी बुराईयों को ध्यान में रखते हुए इस संगठन को खत्म कर दिया और इस की जगह पर 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की।
दोस्तों आज इस पोस्ट में हमनें आपको मसंद प्रणाली क्या थी और इस को किसने शुरू किया था? के बारे में बताया है। उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी। अगर आपका कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट बाक्स में पुछ सकते हो।
Masand Partha kisne shuru ki thi
जवाब देंहटाएंGuru Amar Das ji
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