मंजी प्रथा क्या थी और इस को किसने शुरू किया था?

मंजी प्रथा तीसरे गुरु अमर दास जी के समय तक दूर-दूर तक फैल गयी थी। आवाजाई के साथनों के विकसित न होने के कारण दूर के सिखों के लिए गोइंदवाल, गुरु साहिब का प्रवचन सुनने के लिए आना मुश्किल था। इस कठिनाई को महसूस करते हुए और सिख धर्म के प्रसार के लिए गुरु साहिब ने पंजाब और आसपास के प्रदेश को 22 भागों में विभाजित किया, प्रत्येक स्थान पर एक मुखिया भी नियुक्त किया गया था, क्योंकि वह मुखिया (मंजीदार) एक मंजी पर बैठ कर संगत को धार्मिक प्रवचन देता था और गुरबाणी का पाठ करते थे, इसलिए इसका नाम “मंजी प्रथा” पड़ा।

मंजी प्रथा क्या थी?

उनमें से पाँच मंजीयों के बारे में जानकारी मिलती है -

  • जिला रोपड़ में तहसील खरड़ के गाँव वियून
  • जिला ऊना की तहसील का गांव धर्मशाला
  • अमृतसर जिले का ग्राम वैरोवाल,
  • लाहौर और
  • पटियाला जिले का गरनोह गांव।

इन मंजीयों (बिस्तरों) के प्रमुखों को मंजीदार कहा जाता था। उनकी गुरुओं और सिख पंथ में गहरी श्रद्धा थी। वे बहुत ही सरल और पवित्र जीवन जीते थे। उनसे लोग गुरबानी और धरम की शिक्षाओं को सुनकर वे धन्य हो जातें थे। यह मंजीदर धार्मिक गतिविधियों और लंगर के लिए लोगों से एक भेंट स्वीकार करते थे। इन भेंटों से भवनों का निर्माण, (धर्मशालाओं और गुरुद्वारों का निर्माण) और लंगर का कार्य चलता था।

लोग अपनी इच्छा से मंजीदर को धन (पैसे) देते थे। मंजीदार उन्हें मजबूर नहीं करते थे। मंजी प्रथा सिख धर्म के प्रचार-प्रसार में काफी मददगार साबित हुई। मंजी के नीचे उसकी उप-शाखाएं होती थी जिन्हें 'पीढ़ी' कहा जाता था।

डॉ. फौजा सिंह की राय है कि मंजी की व्यवस्था का मतलब एक क्षेत्र या देश नहीं बल्कि यह एक मिशनरी का संग्रह था और इसके तहत प्रचारक या सिख मिशनरी को मंजीदर कहा जाता था। बौद्ध भिक्षुओं की तरह, मंजीदार भी सिख विचारधारा का अपने-अपने इलाके में प्रचार किया करते थे। यह भी हो सकता है कि वे दूर-दराज के इलाकों में प्रचार करने जाते हो, लेकिन ऐसा निश्चितता के साथ नहीं कहा जा सकता है।

डॉ. निहार रंजन रे ने मंजी प्रथा के संबंध में लिखा है कि इसने सिख समाज के संगठन में योगदान दिया है। इसके दूरगामी राजनीतिक नतीजों वाला भी एक ठोस कदम था। वास्तव में, मंजी प्रथा मसंद प्रथा की पृष्ठभूमि थी। इसे ओर विकसित करके गुरु रामदास जी और गुरु अर्जुन देव जी ने मसंद प्रणाली का गठन और विस्तार किया।

डॉ. गोकल चंद नारंग का इस प्रथा के महत्व के बारे में, एक राय है: “यह बात स्पष्ट है कि तीसरे गुरु साहिब के इस कदम से सिख मत की जड़ें ओर भी मजबूत होती गई और देश के सभी हिस्सों में सिख धर्म प्रचार हुआ फैल।

इस प्रथा की स्थापना के तीन मुख्य लाभ थे -

  • दूर के सिखों को अपने क्षेत्र में ही रहते हुए धार्मिक शिक्षा मिलनी शुरू हो गई।
  • सिख धर्म दूर-दूर तक फैला गया और
  • गुरु के घर और लंगर के लिए लोग भेंट देने लगें।
दोस्तों आज इस पोस्ट में हमनें आपको मंजी प्रथा क्या है? के बारे में बताया है। उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी। अगर आपका कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट बाक्स में पुछ सकते हो।

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