लोकतंत्र के प्रकार

लोकतंत्र के दो प्रकार होते हैं- 

  1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र
  2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
लोकतंत्र के प्रकार
  1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र - प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सभी नागरिक शासन के कार्यो में भाग लेते हैं।य अपने देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य समस्याओं को हल करने के लिए, प्रत्येक नागरिक कानून बनाने, सार्वजनिक नीतियों को तय करने और देश का वार्षिक बजट पारित करने, नए कर लगाने या पुराने करों को समाप्त करने में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते है। हीअरन र्शॉ (Hearn Shaw) के अनुसार, "लोकतंत्र अपने शुद्धतम रूप में वह सरकार है जिसमें संपूर्ण जनता स्वयं किसी भी एजेंट या प्रतिनिधियों के बिना संप्रभुता का प्रयोग करती है।" संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता सरकार के मामलों में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है।
  2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र - अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में, लोग सीधे सरकार के मामलों में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते हैं। ब्लंटशली (Bluntschli) के अनुसार, "प्रतिनिधि लोकतंत्र में यह नियम है कि लोग अपने कर्मचारियों द्वारा शासन करते हैं, और उनके प्रतिनिधियों द्वारा कानून बनाए जाते हैं और सरकार पर नियंत्रण करते हैं। जॉन स्टुअर्ट मिल (John Staurt Mill) के अनुसार, 'अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि लोकतंत्र वह है जिसमें सभी लोग या उनका एक बड़ा हिस्सा समय-समय पर चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी शासन शक्ति का प्रयोग करते हैं।

प्रत्यक्ष लोकतंत्र के साधन -

प्रत्यक्ष लोकतंत्र के चार मुख्य साधन हैं - 

  1. जनमत संग्रह (Referendum) 
  2. प्रस्ताव का अधिकार (Initiative)
  3. लोकमत संग्रह (Plebiscite) 
  4. वापस बुलाना (Recall)

1. जनमत संग्रह (Referendum) - जनमत संग्रह का अर्थ है कि लोगों के पास कानून को अंतिम स्वीकृति देने की शक्ति है। इस माध्यम से संसद द्वारा पारित कानून की अंतिम स्वीकृति जनता से मांगी जाती है। सरल शब्दों में, कानून को विधायिका द्वारा पारित किए जाने के बाद लोगों द्वारा वोट दिया जाता है। यदि बहुसंख्यक लोग इसे स्वीकार करते हैं, तो यह देश का कानून बन जाता है और यदि अधिकांश लोग इसे नहीं मानते हैं, तो उस कानून को रद्द कर दिया जाता है। जनमत संग्रह का साधन वर्तमान में स्विट्जरलैंड में उपयोग किया जाता है। जनमत संग्रह दो प्रकार का हो सकता है -

  • अनिवार्य जनमत संग्रह (Compulsory Referendum)
  • वैकल्पिक जनमत संग्रह (Optional Referendum)

(i) अनिवार्य जनमत संग्रह (Compulsory Referendum) - अनिवार्य जनमत संग्रह के अनुसार, विधायिका द्वारा पारित कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक कि कानून को जनमत संग्रह के माध्यम से लोगों द्वारा पारित नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैंड में, कोई भी संवैधानिक संशोधन तब तक लागू नहीं किया जाता जब तक कि इसे लोगों और कैंटन जनमत संग्रह द्वारा प्रवान नहीं किया जाता है।

(ii) इच्छुक जनमत संग्रह (Optional Referendum) - इच्छुक जनमत संग्रह का अर्थ है कि विधायिका द्वारा पारित कानूनों को जनमत संग्रह के माध्यम से जनता से पारित करवाना जनता की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। इसका मतलब यह है कि विधायिका द्वारा पारित कानूनों को जनमत संग्रह के लिए पेश करने के लिए जनता मांग कर सकती है। उदाहरण के लिए, स्विट्ज़रलैंड में यह कानून है कि यदि विधायिका द्वारा पारित कानून 90 दिनों के भीतर 50,000 मतदाताओं या 8 कैंटों की मांग करता है, तो उस कानून को जनमत संग्रह के लिए प्रस्तुत करना होगा।

2. प्रस्ताव का अधिकार (Initiative) - प्रस्ताव का अधिकार एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जनता किसी विषय पर कानून बनाने के लिए विधायिका को कह सकती है। सरल शब्दों में, नागरिक जिस विषय पर कानून बनाना चाहते हैं, उस विषय पर विधानमंडल को प्रस्ताव प्रस्तुत करते हैं, तो विधानमंडल उस विषय पर निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कानून बनाएगा। स्विट्जरलैंड में, सभी नागरिको को यह अधिकार प्राप्त है। उस देश में 10,000 मतदाता कानून बनाने या संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव कर सकते हैं। प्रस्ताव के अधिकार दो प्रकार के हो सकते हैं -

  • सूत्रात्मक अधिकार (Formulative Initiative)
  • गैर-सूत्रात्मक अधिकार (Un-formulative Initiative)

(i) सूत्रात्मक अधिकार (Formulative Initiative) - इसका मतलब यह है कि अगर जनता कानून बनाने या संविधान में संशोधन के सभी पहलुओं पर एक व्यापक विधेयक विधानमंडल को प्रस्तुत करती है, तो इसे एक सूत्रबद्ध पहल कहा जाता है। यदि विधायिका ऐसे विधेयक के लिए सहमत होती है, तो वह इसे निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार इसे पारित करेगी।

(ii) गैर-सूत्रात्मक अधिकार (Un-formulative Initiative) - इसका मतलब है कि जनता जिस विषय पर कानून बनाना चाहती है, उस पर विधानमंडल को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करती है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि जनता इस पर एक पूर्ण विधेयक पेश नहीं करती है।  बल्कि उस संबंध में कानून का निर्माण करवाने के लिए प्रस्ताव से अपनी इच्छा को व्यक्त करती है। जनता की ऐसी इच्छा अनुसार विधानमंडल एक विधेयक तैयार करता है, फिर निश्चित विधि अनुसार उस पर कार्रवाई की जाती है।

3. लोकमत संग्रह (Plebiscite) - लोकमत संग्रह अंग्रेजी शब्द 'प्लेबिसाइट' (Plebiscite) का अनुवाद है।  प्लेबिसाइट शब्द लैटिन के दो शब्दों प्लेबिस (Plebis) और सीटियम (Sitium) से लिया गया है। 'प्लैबिस' का अर्थ है 'लोग' और 'सेटियम' का अर्थ है 'आदेश'। इस लिए 'प्लेबिसाइट' का शब्दी अर्थ 'लोगों का आदेश' बनता है। लोकमत संग्रह (Plebiscite) और जनमत संग्रह(Referendum) के अर्थ में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है। दोनों का मतलब किसी विषय पर जनता से प्रवानगी प्राप्त करना है। इस बात के बावजूद भी इन दोनों में एक बहुत बड़ा अंतर है। जनमत संग्रह का मतलब विधायक द्वारा पास किए कानून संबंधी लोगों की प्रवानगी लेना है। लेकिन लोकमत संग्रह से लोगों की राय कानून के संबंधी प्राप्त नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उपयोग किसी राजनीतिक मुद्दे पर जनता की राय जानने के लिए किया जाता है। हमारा पड़ोसी पाकिस्तान भी लंबे समय से कश्मीर पर लोकमत संग्रह की मांग कर रहा है।

4. वापस बुलाना (Recall) - इसका अर्थ यह है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जनता की इच्छा के अनुसार कार्यों को पूरा नहीं करते हैं, एक निश्चित संख्या में लोग उन्हें वापस बुलाने की मांग कर सकते हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र का यह बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है, क्योंकि यह लोगों के प्रतिनिधियों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए मजबूर कर सकता है। किसी भ्रष्टाचारी प्रतिनिधि या अधिकारी को लोग किसी भी समय वापस बुला सकते हैं।

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