न्याय क्या है न्याय का अर्थ एंव परिभाषा

न्याय क्या है न्याय की परिभाषा 

न्याय की अवधारणा एक बड़े क्षेत्र की अवधारणा है। यह एक ऐसी अवधारणा है जिसके अर्थो के संबंधी विद्वानो में सहमति  नहीं हैं। न्याय की अवधारणा वास्तव में एक नैतिक अवधारणा है। नैतिकता या नैतिक सिद्धांत हमेशा के लिए स्थिर या समान नहीं हो सकते। कुछ लोग जो नैतिकता देखते हैं वे कुछ अन्य लोगों के लिए अनैतिक भी हो सकते हैं। न्याय की अवधारणा व्यक्ति की उचित या तर्कशील भावना पर आधारित है। जो कुछ व्यक्तियों  की अंतरात्मा को भाता है, वह न्याय पुर्ण है और जो उसकी अंतरात्मा को प्रसन्न नहीं करता है, वह उसकी दृष्टि में अन्यायपूर्ण है। न्याय की अवधारणा व्यक्तिगत रूप से और समाज से समाजिक रूप से संबंधित है। न्याय की अवधारणा के कई पहलू हैं और प्रत्येक पहलू की अपनी ही विशेषताएं हैं।
न्याय क्या है न्याय की परिभाषा

न्याय की अवधारणा क्रियाशील है - सामाजिक मूल्यों और मानव प्रवृत्ति के आधार पर कोई भी विचारधारा या सिद्धांत स्थायी या स्थिर नहीं हो सकता है, उस सिद्धांत को स्थायी रूप से बनाए रखना संभव नहीं है। इसका कारण यह है कि सामाजिक स्थिति और मानव प्रवृत्ति समय और समय की स्थितियों के अनुसार बदलने जा रही है। जब हम यह कहते हैं कि जो कुछ मानव की अंतरात्मा के माध्यम से या समाजिक मूल्यों के द्वारा उचित माना जाता है उसको हम  कि वह हमें न्यायाधीश मानते है, जाहिर है कि न्याय की अवधारणा एक क्रियाशील अवधारणा है। न्याय की इस अवधारणा को एक परिवर्तनशील अवधारणा भी कहा जाता है क्योंकि इसका समय और हलात के अनुसार बदलना प्राकर्तिक है।

जसटिस (Justice) का शब्दी अर्थ - "जसटिस" अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अनुवाद 'न्याय' है। 'जसटिस' शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द जस (Jus) से हुई मानी जाती है। यूनानी भाषा मे जिसका अर्थ 'बंधन' (Bond) होता  है। 'जस्टिस' शब्द का अर्थ इस भावना से लिया गया है कि जो समाज में रहते व्यक्तियों को एक व्यवस्था में बाँधती है। न्याय की भावना ही समाजिक व्यवस्था की होंद का मूल आधार है। अगर मनुष्य संगठित समाज में एक सहयोगी वातावरण में रह रहे हैं, तो इसका मूल कारण न्याय की भावना ही है जिसने मनुष्य को एक व्यवस्था में बंधा है। इस भावना का स्रोत मानव अंतरात्मा है, जो वास्तव में नेकी, अच्छाई, उदारता, दया का प्रतीक है, और इन मानवीय गुणों को न्याय की अवधारणा के मूल आधार पर माना जाता है।

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न्याय की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

जे एस मिल (J.S. Mill) के अनुसार, “न्याय उन विशेष नैतिक मूल्यों का नाम है जो स्पष्ट रूप से मानव कल्याण से संबंधित हैं। ऐसी मूलय जीवन के दिशानिर्देश के अन्य सभी नियमों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं।

मेरियम (Merriam) के अनुसार, 'न्याय मान्यताओं और विधियों की एक ही प्रणाली, जिसके माध्यम से व्यक्ति को वह कुछ दिया जाता है जिसमें उचित होने संबंधी सहमति होती है।

साल्मंड (Salmond) के विचार के अनुसार, 'न्याय का अर्थ है हर व्यक्ति को हिस्सा देना।

आर सी टॅकर (R.C. Tucker) के अनुसार, "दो परस्पर विरोधी पक्ष या सिद्धांतों के बीच उचित संतुलन बनाना न्याय का सारांश है।

सेबाईन (Sabine) के अनुसार, न्याय एक ऐसी कड़ी है जो व्यक्तियों को समरूप समाज के रूप में एकत्रित करती है।  ऐसे समाज में, प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्राकृतिक क्षमताओं और सिखलाई अनुसार अपना जीवन के कर्तव्यों को पूरा करता है।

बैन और पीटर्स (Benn and Peters) के अनुसार, "जब तक सभी लोगों में संबंधित या उचित अंतर नही प्रतीत होते तब तक सभी व्यक्तियों के साथ एक समान व्यवहार करना ही न्याय होता है।

प्रसिद्ध यूनानी विद्वान प्लेटो के अनुसार,"व्यक्तियो द्वारा अपने अपने कर्तव्यों के  उचित पालन और दूसरों के काम में दखल ना देना ही न्याय है।

ब्रिटिश विद्वान बेंथम (Bentham) के अनुसार, सभी लोगों को समानता का हिस्सा देना ही न्याय का मूल आधार है। बेंथम की इस अवधारणा को न्यूमेरिकल जस्टिस (Numerical Justce) कहा जाता है।

प्रसिद्ध विद्वान प्लेटो ने अपनेे ग्रंथ 'रिपब्लिकन' न्याय की अवधारणा को प्रकाशित किया है। उनके विचार के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति के कुछ निश्चित कर्तव्य या कार्य हैं। अगर हर वर्ग के व्यक्ति अपने वास्तविक कार्य को पूरा करन तो ही न्याय प्राप्ती हो सकती है। राजनीति विज्ञान के पिता अरस्तू ने राजनीति में अपना प्रसिद्ध रचना (Politics) में और फ्रांसीसी विद्वान मांटेस्क्यू ने 'द स्पिरट ऑफ लॉज़' (The Spirit of Laws) में न्याय की अवधारणा की व्याख्या की है। उनके विचारों का सारांश यह है कि कर्तव्यों की पूर्ति को ही न्याय का मूल आधार कहा जा सकता है।

न्याय की उपरोक्त परिभाषाओं से, यह स्पष्ट है कि न्याय की अवधारणा मुख्य रूप से नैतिक सरूप की है। उचित्ता न्याय  की अवधारणा का सार है। व्यक्ति के किसी भी कार्य का उचित्ता के आधार पर मूल्यांकन करते समय नैतिक मूल्यों का प्रयोग किया जाता है। जो कुछ प्रवानित नैतिक मूल्य के अनुकूल होता हैं, उसको न्याय पुर्ण माना जाता है। इसके विपरीत, जो मानवीय मूल्यों के अनुकूल नहीं है, उसे अन्याय कहा जाता है। उचित कर्तव्यों की पूर्ति न्याय का महत्वपूर्ण आधार है। तरकशीलता के आधार पर विरोधी विचारों या सिद्धांतों में संतुलन स्थापित किया जाना भी न्याय का प्रतीक है।

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