निर्देशक सिद्धांत क्या हैं?

निर्देशक सिद्धांत क्या हैं?

स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं को भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए नीतियां बनानी चाहिए। इसके संबंध में कुछ निर्देश दिये गए है जिन्हें राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांतों कहा जाता है।  ये सिद्धांत संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 में अंकित हैं।  इस सिद्धांत को संविधान सभा के कानूनी सलाहकार सर बी एन राऊ के मत के अनुसार, उन्हें संविधान के मसौदे में शामिल किया गया है।  इन सिद्धांतों को संविधान में शामिल करने की प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से मिली थी, क्योंकि आयरलैंड के 1937 के संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ ऐसे सिद्धांतों को अपनाया गया था।

ये निर्देशक सिद्धांत क्या हैं?

ये निर्देशक सिद्धांत स्वतंत्र भारत और राज्य सरकारों के लिए निर्देश हैं। ये सिद्धांत भारत सरकार और राज्यों की सरकारों को उनकी नीतियों को इस तरह से तैयार करने के लिए याद दिलाते हैं ता कि इन सिद्धांतों के उद्देश्यो की प्राप्ती हो सके।  संविधान सभा में, डॉ अम्बेडकर ने कहा, "संविधान की इस धारा का मसौदा तैयार करके, संविधान सभा भावी विधायकों और अधिकारियों को कुछ निर्देश दे रही है कि वे अपनी विधायी और कार्यकारी शक्तियों का उपयोग कैसे करना है। ये निर्देशक सिद्धांत केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी आदेश नहीं हैं, लेकिन संविधान ने स्पष्ट कर दिया है कि इन निर्देशों को अदालतों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।  ये सिद्धांत जनहित में हैं।  इसीलिए संविधान का अनुच्छेद 37 कहता है कि यद्यपि इन सिद्धांतों को न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है, ये सिद्धांत देश के शासन की आधारशिला होंगे और कानून बनाते समें इन सिद्धांतो को लागू करना सरकार का कर्तव्य है।

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