अधिकारों की किसमें (प्रकार)

अधिकारों की किसमें, प्रकार या वर्गीकरण

अधिकारों को मुख्य तीन प्रकार का माना जाताा है -
  1. प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights)
  2. नैतिक अधिकार (Moral Rights)
  3. कानूनी अधिकार(Legal Rights)
  1. प्राकृतिक अधिकार - प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत इंग्लैंड के प्रसिद्ध राजनीतिक वैज्ञानिक द्वारा दिया गया है। उनके विचार अनुसार, राज्य के अस्तित्व से पहले, लोग एक प्राकृतिक अवस्था में थे। प्राकृतिक कानून प्राकृतिक स्थिति में प्रचलित थे और लोगों को कुछ प्राकृतिक आकार के साथ-साथ जीवन, संपत्ति और स्वतंत्रता का अधिकार था। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांतों की आम तौर पर यह अर्थ लिया जाता है कि इन अधिकारों का शासक, राज्य नहीं है, बल्कि यह अधिकार मानव को प्रकृति से प्राप्त है। "आज कल, विचारकों का मत है कि राज्य द्वारा व्यक्ति को अधिकार दिए जाते हैं और राज्य के बिना या राज्य से पहले के अधिकारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसी कारण, आधुनिक सिद्धांतकार प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करते हैं।
  2. नैतिक अधिकार - नैतिक अधिकारों की मुख्य विशेषता यह है कि उनके पीछे कानूनी शक्ति नहीं है। ऐसे अधिकारों को लागू करने के लिए कानून की शरण नहीं ली जा सकती। ऐसे अधिकार अदालतों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते। उदाहरण के लिए, प्रत्येक माता-पिता का यह नैतिक अधिकार है कि वे अपने बच्चों से बुढ़ापे में सेवा प्राप्त करें। अगर उनके बच्चे अपने इस नैतिक कर्तव्य को पूरा नहीं करते हैं, तो माता-पिता उनके खिलाफ किसी भी कानून का सहारा नहीं ले सकते। आधुनिक युग में, नैतिक अधिकारों को कम ही महत्व दिया जाता है क्योंकि उनकी धारणा एक ऐसे आधार पर आधारित है जो इन अधिकारों को कोई विशेष महत्व नहीं देत है। उनके खिलाफ या उनके पीछे कोई न्यायिक या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। लेकिन प्राधिकरण का व्यावहारिक विश्लेषण उस शक्ति पर निर्भर करता है जो शक्ति इनकी उल्लंघना करने वाले को दंड दे सकती हो। जिसका अर्थ है कि कानूनी शक्ति की अनुपस्थिति ऐसे अधिकारों को न-मात्र महत्व दे सकती है। इससे ज्यादा अधिकारों का सम्मान लोगों द्वाारा करना संभव नहीं है।
  3. कानूनी अधिकार - नैतिक अधिकारों के उलट कानूनी अधिकार वह अधिकार हैं जिनको कानून की परवानगी प्राप्त हो। भाव उन अधिकार जिन्को प्राप्त करने के लिए कानून की शरण ली जा सकता है। जैसा कि हमारे देश में बोलने और अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को इस विशेषाधिकार के उपयोग से वंचित किया जाता है, तो व्यक्ति आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है। कानून उसके अधिकार की पूरी सुरक्षा करेगा। लीकाॅक (Leacock) के अनुसार, 'कानूनी अधिकार, एक नागरिक का अपने साथी नागरिकों के खिलाफ एक विशेष नागरिक अधिकार होता है जो राज्य की प्रभुताशाली शक्ति नेे उसे दियाा है और वह शक्ति उसकी रक्षा करती है।
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2 टिप्पणियाँ

  1. Jab kisi Govt. Department Ke adhikari Govt. Holiday hone par Holidays cancel kar office open karne ka aadesh written me dete rehte hai jisse Govt. Employees ka manobal or manshik soshan hota hai or uske manvadhikaro ka hanan hota hai to iske against kya kar skte h. Jabki Govt. Holiday me office open karne ke prati koi pratikar avkash bhi nahi dia jata.....

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  2. Filhal to india me human rights jaisi chiz nhi h...

    Sarkar ki alochna krna mtlb khud ka shoshan krna h...

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