अधिकारों की सुरक्षा कैसे करें?

अधिकारों की सुरक्षा - आधुनिक युग में यदि व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा नहीं की जाती है, तो उनका अस्तित्व बिल्कुल मायने नहीं रखता है। इसलिए अधिकारों संबंधी यह एक महत्वपूर्ण समस्या है कि उन्हें सुरक्षित कैसे बनाया जाए। अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए हमारे विचार निम्नलिखित अनुसार है -
अधिकारों की सुरक्षा कैसें करे
  1. संविधान में अधिकारों का अंकित करना (Inclusion of the Rights in the Constitution) - उच्चतम कानून, अर्थात् संविधान में अधिकारों को अंकित करना इनकी सुरक्षा के लिए सबसे उत्तम साधन है। संविधान में अंकित होने से, अधिकारों को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो जाती है और इस प्रकार उन्हें कार्यपालिका और विधानमंडल की मनमानी के शिकार नहीं हो सकते है।
  2. संविधानिक विचारों की व्यवस्था (Provision of Constitutional Remedies) - अधिकारों की सुरक्षा के लिए नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार जरूर प्राप्त होना चाहिए। इसका अर्थ है कि यदि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो, तो वे  अपने अधिकारों को लागू करवाने के लिए, अदालतों की शरण ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए अनुच्छेद 32 में नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है। प्रत्येक भारतीय नागरिक साधारन समय में अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय(Supreme Court) या उच्च न्यायालय (High Court) की शरण ले सकता है।
  3. कठोर संवैधानिक लंबित प्रक्रिया (Rigid Constitutional Amending Process) - अधिकारों की रक्षा के लिए, यह आवश्यक है कि संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया बहुत सख्त होनी चाहिए ताकि शासक दल अपने दल हितों के लिए मौलिक अधिकारों को तुरंत तब्दीली न कर सके। हमारे विचार में संविधान के अन्य अनुच्छेदों से मौलिक अधिकारों वाले अनुच्छेदों में बदलाव करने की प्रक्रिया की सख्त होनी चाहिए और मौलिक अधिकारों में बदलाव को जनता द्वारा जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से किया जाना चाहिए।
  4. मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई भी कानून तैयार करने की मनाही (Provision of framing any law against the Fundamental Rights) - विधानमंडल के पास मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को बनाने की शक्ति नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि सरकार द्वारा बनाया गया वह हर कानून, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, वह रद्द समझा जाएगा।
  5. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary) - अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। एक स्वतंत्र न्यायपालिका का अर्थ है कि न्यायपालिका पूरी तरह से कार्यपालिका और विधायिका के नियंत्रण से स्वतंत्र हो और जनता के दबाव से भी मुक्त हो। स्वतंत्र न्यायपालिका ही अधिकारों की रक्षा कर सकती है। यदि न्यायपालिका कार्यपालिका या विधायिका के नियंत्रण या प्रभाव के अधीन होगी, तो अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं है। स्वतंत्र न्यायपालिका के महत्व पर जोर देने के लिए, यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा का अधिकार नहीं होता उस न्यायपालिका की स्वतंत्रता का कोई विशेष लाभ का नहीं हो सकता है क्योंकि उसके इस  के साथ-साथ न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा  (Power of Judicial Review) की शक्ति भी प्राप्त होनी चाहिए। जिस अदालत के पास यह शक्ति होगी वह उस राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए किसी भी कानून को या राज्य द्वारा किए गए किसी कार्य को असंवैधानिक कहकर रद्द कर सकती है। यदि वह कानून संविधान की किसी व्यवस्था की उलंघना करता होगा।
  6. सूचित नागरिक (Enlightened Citizens) - अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपरोक्त साधन विधायक हैं। इन विधायक साधना का तब ही लाभ हो सकता है यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सुचेत होगे। जिन नागरिकों को अपने अधिकारों प्रति जानकारी नहीं होगी उनके लिए यह विधायक साधन बिल्कुल निर्मूल हैं। इसलिए, अधिकारों की सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता नागरिकों में राजनीतिक जागृति और चेतना की उपस्थिति है। जिस देश के नागरिक सचेत हैं, जहां विधायक उपायों के बिना भी अधिकारों को सुरक्षित रहेगें। इसके विपरीत, जिस देश के नागरिक बिलकुल भी सचेत नहीं हैं, उनके लिए यह विधायक उपचार बिल्कुल सहायक नहीं हो सकते हैं।
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निष्कर्ष (Conclusion)

सारांश , हम कह सकते हैं कि अधिकारों की रक्षा के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि नागरिकों के अधिकारों को देश के सर्वोच्च संविधान में अंकित किया जाए और उनमें किसी भी प्रकार की तबदीली करने के लिए एक बहुत कठोर विधि निश्चित की जाए। इसके इलावा अधिकारों की सुरक्षा के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना जरूरी है इन सभी महत्वपूर्ण प्रावधानों से अधिक जरूरी सुरक्षा नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में सचेत होना चाहिए।

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